हमारे ज़ेहन की इस अर्श-पैमाई के क्या कहने
हम अपने ज़ेहन के बारे में जब भी सोचते हैं
मगर ये भी तो सोचो ज़ेहन के बारे में किस से सोचते हैं
क्या हमारा ज़ेहन ही फ़ाएल भी है और मुन्फ़इल भी
हम को ये महसूस होता है
हम अपने आप से कितने ज़ियादा हैं

नज़्म
हम अपने आप से कितने ज़ियादा हैं
तहसीन फ़िराक़ी