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हार जीत | शाही शायरी
haar jit

नज़्म

हार जीत

मुसहफ़ इक़बाल तौसिफ़ी

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मैं ने रेस में एक घोड़े पर हज़ार रूपे लगाए
और हार गया

मैं ने अपने बेटे को वो सब कुछ दिया... जो दे सकता था
सारी आसाइशें तर्क कर के

लेकिन भूल गया
उसे अपनी ज़िंदगी जीना है

मंज़र बदलते रहे
फिर वो आ गई

और भी लोग आए
लेकिन हर शख़्स के साथ उस के अपने साए थे

और जब सारे साए रुख़्सत हुए
तो मैं ने मुसल्ला बिछाया

या अल्लाह
ये मेरी आख़िरी बाज़ी..