बे-आवाज़ थे आँसू इस के
छोटे छोटे पैर थे उस के
तन जैसे रूई का गाला
रंग था काला
नदी किनारे तक पैरों के
सारे निशान सलामत थे
पार नदी के कुछ भी नहीं था
पार नदी के कुछ भी नहीं है
सारी राहें नदिया के अंदर जाती हैं
और फिर वहीं की हो जाती हैं
छोटे छोटे पैर बरहना रेत के ऊपर फूल खिला कर
नदी किनारे तक जाते हैं
और फिर पार कहाँ जाते हैं
हर बच्चे को
उड़ती तितली सरगोशी में बतलाती है
माँ तेरी नदिया के अंदर
दूध का इक मश्कीज़ा ले कर
तेरा रस्ता देख रही है
कौन बताए उन बच्चों को
माँ नदिया के अंदर कब है
माँ तू ख़ुद इक तेज़ नदी है
माँ इक दूध-भरी नद्दी है
नज़्म
हादसा
वज़ीर आग़ा