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गुनाहों की धुँद | शाही शायरी
gunahon ki dhund

नज़्म

गुनाहों की धुँद

फ़रहत एहसास

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अपनी दुआओं के ज़ख़्मी पैरों से
चलता जाता हूँ

और ये काँटे-दार रास्ता
उस वीरान मस्जिद तक जाता है

जिस के तमाम गुम्बद ओ मेहराब
मेरे गुनाहों की धुँद में

डूबे हुए हैं