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गुनाह | शाही शायरी
gunah

नज़्म

गुनाह

आदिल हयात

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पूछता हूँ
जब कभी मैं इन फ़रिश्तों से

कि लिखा क्या है तुम ने
हाल मेरे उन गुनाहों का

जिन्हें मैं रोज़ करता हूँ
तो ज़ालिम

कुछ बताते ही नहीं हैं
हाँ मगर वो

हाल मेरे उन गुनाहों का सुनाते हैं
जिन्हें भूले से भी

मैं ने कभी सोचा नहीं है