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गुनाह ओ सवाब | शाही शायरी
gunah o sawab

नज़्म

गुनाह ओ सवाब

अहमद नदीम क़ासमी

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मेहरबाँ रात ने
अपनी आग़ोश में

कितने तरसे हुए बे-गुनाहों को भींचा
दिलासा दिया

और उन्हें इस तरह के गुनाहों की तर्ग़ीब दी
जिस तरह के गुनाहों से मीलाद-ए-आदम हुआ था