EN اردو
गुमनाम शहीद का कतबा | शाही शायरी
gumnam shahid ka katba

नज़्म

गुमनाम शहीद का कतबा

हसन अकबर कमाल

;

सिपह-गर
ऐ शहीद-ए-हुर्मत-ए-अर्ज़-ए-वतन

तेरा लहू बुनियाद में है
ऐसी नादीदा फ़सीलों की

जो हर जानिब
वतन की सरहदों पर

दुश्मनों की राह में हाइल रहेंगी
तेरी मर्ग-ए-बे-निशाँ से

हो गया दाइम निशाँ तेरे वतन का
तू रहा गुमनाम

लेकिन ता-क़यामत नाम तेरी सर-ज़मीं का
याद रक्खा जाएगा