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गुम-शुदा | शाही शायरी
gum-shuda

नज़्म

गुम-शुदा

शहरयार

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खुरदुरे जिस्म के नशेब-ओ-फ़राज़
जानने की हवस में जिस की ज़बाँ

और सब ज़ाइक़े भुला बैठी
वो निहत्ता अकेला रात के वक़्त

एक दिल-दोज़ चीख़ के हम-राह
जंगलों की तरफ़ गया था कभी

और फिर लौट कर नहीं आया
अब वो शायद कभी न आएगा

उस के साए की दोनों आँखें मगर
मौत से उस की बे-ख़बर हैं अभी

इस की आमद की मुंतज़िर हैं अभी