अजब समाँ है
मैं बंद आँखों से तक रही हूँ
ख़ुमार-ए-शब में गुलाब-रुत की रफ़ाक़तों से महक रही हूँ
वो नर्म ख़ुशबू की तरह दिल में उतर रहा है
में क़ुर्ब-ए-जाँ की लताफ़तों से बहक रही हूँ
ये चाहतों की हसीन बारिश का मो'जिज़ा है
कि मैरी पोरें सुलग रही हैं
मैं क़तरा क़तरा पिघल रही हूँ
मैं रंग-ओ-ख़ुशबू का लम्स पा कर
वफ़ा के पैकर में ढल रही हूँ
न मैं ज़मीं पर
न आसमाँ में
वो ऐसा जादू जगा रहा है
गुलाबी बारिश सुनहरे सपनों के सारे मतलब वो धीरे धीरे सुझा रहा है
मुझे वो मुझ से चुरा रहा है
नज़्म
गुलाबी बारिश
नाज़ बट