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गोशे | शाही शायरी
goshe

नज़्म

गोशे

अब्दुल अहद साज़

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चलो न इस कोहनगी को तज कर
हयात के इस वसीअ जंगल

में ऐसे गोशे तलाश कर लें
जो सालहा-साल तक बशर की अमीक़ नज़रों से बच रहे हैं

गुज़रते लम्हों की गर्द की तह में दब गए हैं
है जिन में इम्कान ज़िंदगी का

है जिन में इम्कान रौशनी का
क़दीम गोशे जो जिद्दतों के अमीन भी हैं