लौट रहा था
फूलों की घाटी से जब
सवार था मैं
जिस घोड़े पर
वो लुढका
मैं ने सोचा
उसे भी शायद
घर की याद ने घेर लिया है!

नज़्म
घर की याद
जयंत परमार
नज़्म
जयंत परमार
लौट रहा था
फूलों की घाटी से जब
सवार था मैं
जिस घोड़े पर
वो लुढका
मैं ने सोचा
उसे भी शायद
घर की याद ने घेर लिया है!