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घर की याद | शाही शायरी
ghar ki yaad

नज़्म

घर की याद

जयंत परमार

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लौट रहा था
फूलों की घाटी से जब

सवार था मैं
जिस घोड़े पर

वो लुढका
मैं ने सोचा

उसे भी शायद
घर की याद ने घेर लिया है!