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घर की चिंता | शाही शायरी
ghar ki chinta

नज़्म

घर की चिंता

मोहम्मद अल्वी

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घर से बाहर
आँगन में

खाट पे बैठी
तीन औरतें

खुसुर-पुसुर करती हैं!
एक मोटी है

दूसरी लम्बी
तीसरी क़द की छोटी है

छोटी दोनों हाथ हिला के
मुँह ही मुँह में

जाने क्या कहती है
लम्बी सर से सर जोड़े

बड़े चाव से सुनती है
मोटी नाक पे उँगली धर के

बिना सुने ही
मटकी सा सर धुनती है

पास ही इक नन्ही सी चिड़िया
गिरे पड़े तिनके चुनती है!