ग़रीबी को मिटा देंगे ग़रीबी को मिटा देंगे
हम अपने बाज़ुओं का ज़ोर दुनिया को दिखाएँगे
हवस के आसमाँ बर-दोश महलों को गिरा देंगे
दर-ए-इंसानियत पर ज़ालिमों के सर झुका देंगे
ग़रीबी को मिटा देंगे ग़रीबी को मिटा देंगे
किसी के ऐश से बे-वासता रंजिश नहीं हम को
किसी के सीम-ओ-ज़र से बे-सबब काविश नहीं हम को
किसी पर ज़ुल्म ढाने की कभी ख़्वाहिश नहीं हम को
मगर हम ज़ुल्म के बढ़ते हुए शो'ले बुझा देंगे
ग़रीबी को मिटा देंगे ग़रीबी को मिटा देंगे
नज़्म
ग़रीबों का गीत
मसूद अख़्तर जमाल