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गर्द-ए-राह | शाही शायरी
gard-e-rah

नज़्म

गर्द-ए-राह

आदिल हयात

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फिर मिरे एहसास ने
मुझ को

उड़ा कर साथ अपने
ये कहाँ पर ला के छोड़ा

अजनबी इस शहर में
लगता है जैसे

सैकड़ों अफ़राद
मेरे हम-नवा व हम-क़दम हो कर

पराए शहर में
मेरी तरह ही

रास्ते की गर्द बन कर उड़ रहे हैं