फिर मिरे एहसास ने
मुझ को
उड़ा कर साथ अपने
ये कहाँ पर ला के छोड़ा
अजनबी इस शहर में
लगता है जैसे
सैकड़ों अफ़राद
मेरे हम-नवा व हम-क़दम हो कर
पराए शहर में
मेरी तरह ही
रास्ते की गर्द बन कर उड़ रहे हैं
नज़्म
गर्द-ए-राह
आदिल हयात
नज़्म
आदिल हयात
फिर मिरे एहसास ने
मुझ को
उड़ा कर साथ अपने
ये कहाँ पर ला के छोड़ा
अजनबी इस शहर में
लगता है जैसे
सैकड़ों अफ़राद
मेरे हम-नवा व हम-क़दम हो कर
पराए शहर में
मेरी तरह ही
रास्ते की गर्द बन कर उड़ रहे हैं