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गर्द | शाही शायरी
gard

नज़्म

गर्द

आदिल हयात

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अपनी मंज़िल की तरफ़
मुज़्महिल अंदाज़ से चलता हुआ

मैं जा रहा था
थी ख़बर कुछ भी नहीं

धूप के ढलते ही परछाईं मिरी
साथ मेरा छोड़ कर

आगे मिरे हो जाएगी
बे-नूर राहों में अकेला

गर्द को उड़ता हुआ
मैं देखता रह जाऊँगा