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गंगा जी | शाही शायरी
ganga ji

नज़्म

गंगा जी

सुरूर जहानाबादी

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ओ पाक नाज़नीं ओ फूलों के गहने वाली
सरसब्ज़ वादियों के दामन में बहने वाली

ओ नाज़-आफ़रीं ओ सिद्क़ ओ सफ़ा की देवी
ओ इफ़्फ़त-ए-मुजस्सम पर्बत की रहने वाली

सल्ले-अला ये तेरी मौजों का गुनगुनाना
वहदत का ये तराना ओ चुप न रहने वाली

हुस्न-ए-ग़यूर तेरा है बे-नियाज़ हस्ती
तू बहर-ए-मारेफ़त है ओ पाक-बाज़ हस्ती

हाँ तुझ को जुस्तुजू है किस बहर-ए-बे-कराँ की
हम पर तो कुछ हक़ीक़त खुलती नहीं जहाँ की

ऐ पर्दा-सोज़-ए-इम्काँ ऐ जल्वा-रेज़-ए-इरफ़ाँ
तू शम-ए-अंजुमन है किस बज़्म-ए-दास्ताँ की

क्यूँ जादा-ए-तलब में फिरती कशाँ कशाँ है
तुझ को तलाश है किस गुम-गश्ता कारवाँ की

जाती है तू कहाँ को आती है तू कहाँ से
दिल-बस्तगी है तुझ को किस बहर-ए-बे-निशाँ से