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ग़म का बादल | शाही शायरी
gham ka baadal

नज़्म

ग़म का बादल

फ़रीद इशरती

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ग़म का बादल गर बरस जाए तो उभरे आफ़्ताब
ग़म-समुंदर

मोतियों की कान है
या रग-ए-संग-ए-गिराँ-माया की इक पहचान है

ग़म वो आईना कि जिस में अक्स-ए-ज़ुल्फ़-ए-अम्बरीं
सूरत-ए-अर्ज़-ओ-समा

जल्वा-नुमा
ख़्वाब-ए-ज़ार-ए-ज़िंदगी के वास्ते ग़म का परतव

परतव-ए-ख़ुर्शीद है
ग़म का बादल गर बरस जाए तो उभरे आफ़्ताब