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ग़म-गुसार | शाही शायरी
gham-gusar

नज़्म

ग़म-गुसार

हमीदा शाहीन

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धूप में साथ खड़े होने वालों की ख़ुशबू
दिल के अंदर रच जाती है

ख़ून का हिस्सा बन जाती है