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गाँधी | शाही शायरी
gandhi

नज़्म

गाँधी

साहिर होशियारपुरी

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एक फ़क़ीर
एक इंसाँ पैकर-ए-इख़्लास रूह-ए-रास्ती

इक फ़क़ीर-ए-बे-नवा ईसार जिस की ज़िंदगी
जिस के हर क़ौल-ओ-अमल में अम्न का पैग़ाम था

जिस का हर इक़दाम गोया आफ़ियत-अंजाम था
जिस की दुनिया बंदगी भगती सुरूर-ए-जावेदाँ

जिस की दुनिया कैफ़-ओ-सरमस्ती की हासिल बे-गुमाँ
आश्ती थी जिस की फ़ितरत जिस का मज़हब प्यार था

ख़िदमत-ए-इंसानियत का जो अलम-बरदार था
अज़्म ने जिस के हर इक मुश्किल को आसाँ कर दिया

जज़्बा-ए-एहसास-ए-ख़ुद्दारी बशर में भर दिया
नाज़ उठाए हिन्द के वो हिन्द का ग़म-ख़्वार था

कारवान-ए-हुर्रियत का रहबर-ओ-सालार था
ये भी है मोजिज़-बयानी उस की हर तहरीर की

नक़्श-ए-फ़र्सूदा से पैदा इक नई तस्वीर की
ख़ाक से शो'ले उठे और आसमाँ पर छा गए

माह-ओ-अंजुम बन गए कौन-ओ-मकाँ पर छा गए
तीरगी भागी जहालत की फ़ज़ा छुटने लगी

हौले हौले तीरा-ओ-तारीक शब कटने लगी
हर तरफ़ कैफ़-ओ-मसर्रत हर तरफ़ नूर-ओ-सुरूर

ग़ुंचे ग़ुंचे पर तबस्सुम चश्म-ए-नर्गिस पर ग़ुरूर
ये फ़ुसूँ-कारी हुई जिस के सबब वो कौन था

ये जुनूँ-कारी हुई जिस के सबब वो कौन था
नाम था गाँधी मगर उस के हज़ारों नाम हैं

एक मय-ख़ाना है जिस में हर तरह के जाम हैं