मुँह बसोरे ये शाम खिड़की पर
आन बैठी है दोपहर ही से
दिल कि जैसे ख़िज़ाँ-ज़दा पत्ता
टूटने को है
कोई बात करो
नज़्म
कोई बात करो
तरन्नुम रियाज़
नज़्म
तरन्नुम रियाज़
मुँह बसोरे ये शाम खिड़की पर
आन बैठी है दोपहर ही से
दिल कि जैसे ख़िज़ाँ-ज़दा पत्ता
टूटने को है
कोई बात करो