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फ़रेब-दर-फ़रेब | शाही शायरी
fareb-dar-fareb

नज़्म

फ़रेब-दर-फ़रेब

शहरयार

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दिन के सहरा से जब बनी जाँ पर
एक मुबहम सा आसरा पा कर

हम चले आए इस तरफ़ और अब
रात के इस अथाह दरिया में

ख़्वाब की कश्तियों को खेते हैं!