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फ़क़ीरी में | शाही शायरी
faqiri mein

नज़्म

फ़क़ीरी में

साजिदा ज़ैदी

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फ़क़ीरी में भी ख़ुश-वक़्ती के
कुछ सामान फ़राहम थे

ख़यालों के बगूले
मुज़्तरिब जज़्बों के हँगामे,

तलातुम बहर-ए-हस्ती में
तमव्वुज-ए-रूह के बन में,

अजब अफ़्ताँ ओ ख़िज़ाँ मरहले पहनाई शब के,
तड़प ग़म-हा-ए-हिज्राँ की

लरज़ती आरज़ू दीदार-ए-जानाँ की
अदम-आबाद के सहरा में एक ज़र्रा

कि मिस्ल-ए-क़तरा-ए-सीमाब लर्ज़ीदा
सदफ़ में ज़ेहन के जूँ

गौहर-ए-कामयाब पोशीदा
दिल-ए-सद-पारा

जू-ए-ग़म
लरज़ती कश्ती-ए-एहसास

जहाँ-बीनी का दिल में अज़्म-ए-दुज़्दीदा
फ़क़ीरी में यही असबाब-ए-हस्ती था यही दर्द-ए-तह-ए-जाम-ए-तमन्ना था

यही सामाँ बचा लेते तो अच्छा था
फ़क़ीरी में मगर ये कौन सी उफ़्ताद आई है

कि सामाँ लुट गया राहों में कासा दिल का ख़ाली है