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एक तितली उड़ी | शाही शायरी
ek titli uDi

नज़्म

एक तितली उड़ी

इमरान शमशाद

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एक तितली उड़ी
गुल्सिताँ को चली

डाली डाली बढ़ी
ग़ुंचा ग़ुंचा फिरी

उस की इक फूल से
दोस्ती हो गई

ख़ुश-नवा सब परिंदे चहकने लगे
ख़ार तक ख़ुश-दिली से महकने लगे

फूल ने जड़ की मेहनत का रस
ख़ुद निछावर किया

और तितली मोहब्बत के रंगीन पल
छोड़ कर उड़ गई

फिर न तितली मिली
और न गुल खिल सका

बूटे बूटों तुले आ गए
और फिर गुल्सिताँ छावनी बन गया