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एक शाएर दोस्त से | शाही शायरी
ek shaer dost se

नज़्म

एक शाएर दोस्त से

जावेद अख़्तर

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घर में बैठे हुए क्या लिखते हो
बाहर निकलो

देखो क्या हाल है दुनिया का
ये क्या आलम है

सूनी आँखें हैं
सभी ख़ुशियों से ख़ाली जैसे

आओ इन आँखों में ख़ुशियों की चमक हम लिख दें
ये जो माथे हैं

उदासी की लकीरों के तले
आओ इन माथों पे क़िस्मत की दमक हम लिख दें

चेहरों से गहरी ये मायूसी मिटा के
आओ

इन पे उम्मीद की इक उजली किरन हम लिख दें
दूर तक जो हमें वीराने नज़र आते हैं

आओ वीरानों पर अब एक चमन हम लिख दें
लफ़्ज़-दर-लफ़्ज़ समुंदर सा बहे

मौज-ब-मौज
बहर-ए-नग़्मात में

हर कोह-ए-सितम हल हो जाए
दुनिया दुनिया न रहे एक ग़ज़ल हो जाए