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एक साहिली दिन | शाही शायरी
ek sahili din

नज़्म

एक साहिली दिन

नसीर अहमद नासिर

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समुंदर बे-करानी का अनोखा सिलसिला है
आसमाँ भी अपने नीले-पन से उकताया हुआ है

पानियों पर चलते चलते
नम हवा के पाँव भी शल हो चुके हैं

बादबाँ सोने लगे हैं
साहिलों पर

आफ़्ताबी ग़ुस्ल करती लड़कियाँ भी
लौट कर अपने घरों को जा चुकी हैं

रेत पर फैले हुए हैं
उन के क़दमों के निशाँ

जिस्मों की नंगी बास
मशरूबात के बेकार टन

तस्वीर में औंधा पड़ा है
ज़िंदगी की शाम में भीगा हुआ

इक दिन!