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एक रौशनी | शाही शायरी
ek raushni

नज़्म

एक रौशनी

जावेद शाहीन

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एक रौशनी
बे-हद शफ़्फ़ाफ़

बीमार रौशनियों के बोझ-तले दबी हुई
रिहाई की कोशिश में मसरूफ़

उम्मीद के ज़ीने पर खड़ी
मुझे देखती है

मेरी तरफ़ सरकती है
अपना हाथ मेरी तरफ़ बढ़ाती है

लेकिन फिसल कर
अँधेरों में

गिर जाती है
अंधी रौशनी

मेरे मफ़्लूज हाथ देखने से मअज़ूर रौशनी