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एक रौशन जवाँ जुस्तुजू | शाही शायरी
ek raushan jawan justuju

नज़्म

एक रौशन जवाँ जुस्तुजू

नाहीद क़ासमी

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जुस्तुजू का निडर क़ाफ़िला
मिशअलें थाम कर, रात को चीरता

हँसता गाता हुआ, अपनी मंज़िल की जानिब रवाना हुआ
सब के चेहरों पर रौशन हुईं काविशें

खोजी आँखों में झिलमिल सितारे जले
कितनी रौशन फ़ज़ा कितनी रौशन फ़ज़ा!!

आओ अपने क़दम तेज़ कर लें कि वो सामने अपनी मेहनत का पौदा तनावर शजर बन गया
पर ये रौशन फ़ज़ा में धुँदलका सा क्यूँ छा गया

(मिशअलों को जलाए रखो साथियो, गीत गाते रहो, आगे बढ़ते रहो)
एक चमकीला गोशा दिखाई नहीं दे रहा, किन अंधेरों की फ़ौजों का हमला हुआ

(मिशअलों को जलाए रखो)
मंज़िलें तो क़रीब आ गईं

फिर ये क़दमों में बेड़ी सी क्या!
फिर ये आँखों पे बादल से क्यूँ

मिश्अलों की क़तारें रुकीं (और चलते हुए साए भी थम गए)
गीत सब तौक़-ए-गर्दन हुए

क़ाफ़िला दायरा बन गया झुक गया रो दिया
एक मंज़र सदा के लिए गीली आँखों में ज़िंदा हुआ

एक बाज़ू गिरा
एक मिशअल बुझी

एक रौशन जवाँ जुस्तुजू सो गई
एक चमकीला गोशा अंधेरा हुआ