EN اردو
एक पैदल चलने वाले दोस्त का नौहा | शाही शायरी
ek paidal chalne wale dost ka nauha

नज़्म

एक पैदल चलने वाले दोस्त का नौहा

ख़ुर्शीद रिज़वी

;

हुजूम से बच के
सूने सूने ख़मोश रस्तों पे चलने वाला

वो उस ज़माने में पा-प्यादा मुसाफ़िरत का अमीन
रस्ता बदल चुका है

नज़र अबस उस का नक़्श
मानूस रास्तों पर

तलाश कर के चौंकती है
मुझे ख़बर है वो जा चुका है

वो जा-ब-जा राह में उभरती शबीह उस की
निगाह की तिश्नगी ने मिस्ल-ए-सराब ईजाद कर रखी है

जब आख़िरी बार उस को देखा
तो उस का रस्ता बदल चुका था

हर इक तरीक़ा बदल चुका था
हुजूम से बच के चलने वाला

हुजूम के साथ चल रहा था
जब आख़िरी बार उस को देखा

तो उम्र भर की मुसाफ़िरत के ख़िलाफ़
उस को सवार देखा

और उस के पहलू में पा-प्यादा हुजूम को सोगवार देखा