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एक नज़्म लिखना मुश्किल है | शाही शायरी
ek nazm likhna mushkil hai

नज़्म

एक नज़्म लिखना मुश्किल है

अज़रा अब्बास

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इसे वही जानता है
जिस ने एक बच्चा जना हो

या उसे जन्म देने से
पहले बहा दिया हो

दोनों दुख एक ही हैं
जैसे तुम्हें

गर्म गर्म जलते हुए लोहे से
दाग़ा जा रहा हो

या तुम्हारे जिस्म को
गूदा जा रहा हो

एक सिरे से दूसरे सिरे तक
अंधेरे और सन्नाटे में

दरवाज़ा हो न कोई शिगाफ़
कि आवाज़ बाहर जा सके

बस जैसे
एक कुंद छुरी जो तुम्हारे ही हाथों

तुम्हारी गर्दन काट रही हो
और इस लज़्ज़त-आमेज़ ख़ुद-अज़िय्यती में

तुम ख़ुद को हलकान होते हुए
देख रहे हो

लम्हा-ब-लम्हा
एक वजूद को

दूसरे से बाहर धकेलना
बाहर आलूदगियों के ढेर पर

धीरे धीरे
कोई नाम देने के लिए