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एक नज़्म | शाही शायरी
ek nazm

नज़्म

एक नज़्म

असलम अंसारी

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हर-चंद है ज़ौक़-ए-कामरानी
हंगामा-ए-ज़िंदगी का बाइ'स

हर-चंद है आगही की ज़द में
ये हुस्न-ए-गुल-ओ-मह-ओ-सितारा

हर-चंद हर आरज़ू का धारा
गुम दश्त-ए-सराब में हुआ है

अंजाम-ए-अमल है सरगिरानी
इक अश्क-ए-अलम है ज़िंदगानी

लेकिन न रहे अगर जहाँ में
तकमील-ए-हुनर की कोई सूरत

दुनिया में कि बे-ख़याल साहिल
तूफ़ाँ है हयात की रवानी

मंज़िल तो नहीं है कोई मंज़िल
ताहम ये सफ़र का बर्ग-ओ-सामाँ

ये रंग-ए-निशात-ए-कार-दानी
हर गाम उमीद-ए-कामरानी

अर्बाब-ए-मुराद का सिला है
गर ये भी न हो तो और क्या है