रफ़्ता रफ़्ता सब आवाज़ें
जो दिल के अंदर हैं
और बाहर
इक ऐसे सकते में खो जाएँगी
जिस का मफ़्हूम अभी तक
किसी इशाअत-घर के हर्फ़ों में ढला नहीं है
आसार-ए-क़दीमा के माहिर
मदफ़ून पुराने शहर के अंदर बाहर से खोद चुके हैं
लेकिन उस का मफ़्हूम अभी तक
किसी इमारत की शाह-गर्दिश की मेहराबों में
और किसी चार आईने के रिसते घाव में मिला नहीं है
जिस को इस का राज़ मिले वो हस्ब-ज़ेल पते पर पहुँचा दे:
'अनीस-नागी', लाहौर
नज़्म
एक नज़्म
अनीस नागी