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एक नज़र | शाही शायरी
ek nazar

नज़्म

एक नज़र

सूफ़ी तबस्सुम

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एक बार और ज़रा देख इधर
अपने जल्वों को बिखर जाने दे

रूह में मिरी उतर जाने दे
मुस्कुराती हुई नज़रों का फ़ुसूँ

ये हसीं लब ये दरख़्शंदा जबीं
अभी बेबाक नहीं

और आने दे उन्हें मेरी निगाहों के क़रीं
डाल फिर मेरी जवाँ-ख़ेज़ तमन्नाओं पर

बे-मुहाबा सा बासी नज़र
एक बार और ज़रा देख इधर

हाँ वही एक नज़र
ग़ैर-फ़ानी सी नज़र

जिस की आग़ोश में रक़्सिंदा है
अबदी कैफ़ की दुनिया-ए-जमील

जिस में तारीकी आलाम नहीं
काहिश गर्दिश-ए-अय्याम नहीं

महव हो जाते हैं जिस से यकसर
याद-ए-माज़ी की ख़लिश

काविश-ए-फ़र्दा का असर
हाँ वहीं एक नज़र

एक बार और ज़रा देख इधर