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एक मंज़र | शाही शायरी
ek manzar

नज़्म

एक मंज़र

राही मासूम रज़ा

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बाँस के झुण्ड में
चाँदनी जब दबे पाँव दाख़िल हुई

पत्तियों के लिहाफ़ों में दुबकी हुई सो रही थी हवा
जाग उठी

इक ज़रा हट के तालाब की गोद में
घुस के सोई हुई नन्ही लहरों ने आँखें मलीं

कुलबुलाने लगीं
और कुहन-साल टीलों पे बैठे हुए

कुछ कुहन-साल पेड़ों की परछाइयाँ
सर हिलाने लगीं

दूर अंधेरे के तालाब में
डुबकी मारे हुए गाँव ने

सर निकाला और इक साँस ली