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एक लम्हा | शाही शायरी
ek lamha

नज़्म

एक लम्हा

शाहिद माहुली

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लम्हा
दिल के बहुत पास से

गुज़रा हुआ सिर्फ़ एक लम्हा
बहा ले गया है

जाने कितने ख़्वाबों ख़्वाहिशों और मंसूबों को
बचा है

हड्डियों तक धँसा हुआ सन्नाटा
रुकती हुई साँसें

डूबती हुई नब्ज़
और सर्द हुआ जिस्म

फिर कोई तेज़ हवा का झोंका
ढेर सारी गड-मड आवाज़ें

चीख़ हँसी और मुस्कुराहट
घर दफ़्तर बीवी बच्चे

और आइंदा बीस बरसों का मंसूबा
भागती हुई आड़ी तिरछी तस्वीरें

एक के बाद दूसरे बे-रब्त मनाज़िर
और फिर

ठहर गया है गुज़रे हुए लम्हे का साया
डरा-डरा सहमा-सहमा दिल

और थर-थर काँपता हुआ जिस्म