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एक लम्हा! | शाही शायरी
ek lamha!

नज़्म

एक लम्हा!

कैफ़ी आज़मी

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ज़िंदगी नाम है कुछ लम्हों का
और उन में भी वही इक लम्हा

जिस में दो बोलती आँखें
चाय की प्याली से जब उट्ठीं

तो दिल में डूबीं
डूब के दिल में कहीं

आज तुम कुछ न कहो
आज मैं कुछ न कहूँ

बस यूँही बैठे रहो
हाथ में हाथ लिए

ग़म की सौग़ात लिए
गर्मी-ए-जज़्बात लिए

कौन जाने कि उसी लम्हे में
दूर पर्बत पे कहीं

बर्फ़ पिघलने ही लगे