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एक लड़की से | शाही शायरी
ek laDki se

नज़्म

एक लड़की से

फ़हमीदा रियाज़

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संग-दिल रिवाजों की
ये इमारत-ए-कोहना

अपने आप पर नादिम
अपने बोझ से लर्ज़ां

जिस का ज़र्रा ज़र्रा है
ख़ुद-शिकस्तगी सामाँ

सब ख़मीदा दीवारें
सब झुकी हुई गुड़ियाँ

संग-दिल रिवाजों के
ख़स्ता-हाल ज़िंदाँ में

इक सदा-ए-मस्ताना
एक रक़्स-ए-रिंदाना

ये इमारत-ए-कोहना टूट भी तो सकती है
ये असीर-ए-शहज़ादी छूट भी तो सकती है

ये असीर-ए-शहज़ादी