ज़रा उस ख़ुद अपने ही
जज़्बों से मजबूर लड़की को देखो
जो इक शाख़-ए-गुल की तरह
अन-गिनत चाहतों के झकोलों की ज़द में
उड़ी जा रही है
ये लड़की
जो अपने ही फूल ऐसे कपड़ों से शरमाती
आँचल समेटे निगाहें झुकाए चली जा रही है
जब अपने हसीं घर की दहलीज़ पर जा रुकेगी
तो मुख मोड़ कर मुस्कुराएगी जैसे
अभी उस ने इक घात में बैठे
दिल को पसंद आने वाले
शिकारी को धोका दिया है
नज़्म
एक लड़की
मुनीर नियाज़ी