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एक ख़्वाहिश | शाही शायरी
ek KHwahish

नज़्म

एक ख़्वाहिश

अनवर सदीद

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ये ख़्वाहिश है
कि मैं गीली ज़मीं पर

अपने दाएँ हाथ की उँगली से
इक बे-हाशिया तस्वीर खींचूँ

जो मिरे महबूब के चेहरे के तजरीदी तसव्वुर से
मुज़य्यन हो

हवा, गुलशन की दीवारों के रौज़न से
इधर आए

तो इस तस्वीर में अपने मोअत्तर रंग-ए-बू दे
मिरे ख़ाके की तजरीदें मिटा दे

उठा कर गीली मिट्टी से
सजा दे मेरी आँखों में

ये ख़्वाहिश है मेरी