रात कल फ़ज़ाओं में तेरी ही कहानी थी
हम भी सुनने वाले थे दिल की पासबानी थी
आसमाँ से आमद थी गुम-शुदा ख़यालों की
जिस क़दर तसव्वुर था इतनी शादमानी थी
दूर सारी दुनिया से इक नगर बसाया था
उस का एक राजा था उस की एक रानी थी
ज़ुल्फ़-ओ-रुख़ की बातें थीं दिन था और रातें थीं
सुब्ह कितनी रंगीं थी शाम क्या सुहानी थी
याद हैं वो दिन अब तक जब हसीन रातों में
तेरी गुनगुनाहट पर मेरी नग़्मा-ख़्वानी थी
तेरे इक तबस्सुम पर वक़्त भी ठहर जाता
इस में कब तरन्नुम था इस में कब रवानी थी
आँसुओं से जीता था गौहर-ए-मोहब्बत को
तेरी कामरानी भी कैसी कामरानी थी
कितनी गर्म-जोशी थी कितनी गिर्या-ओ-ज़ारी
कितनी सर्द-मेहरी थी कितनी सरगिरानी थी
ये मिरी ख़ुदाई थी या तिरी ख़ुदा जाने
मेरी लन-तरानी पर तेरी बे-ज़बानी थी
मैं ने तुझ को कब समझा मैं ने तुझ को कब पाया
मैं ज़मीं का बंदा तू रूह आसमानी थी
नज़्म
एक कहानी
मसऊद हुसैन ख़ां