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एक इंच मुस्कुराहट | शाही शायरी
ek inch muskurahaT

नज़्म

एक इंच मुस्कुराहट

शमीम क़ासमी

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कभी कभी जी चाहता है कि जियूँ
बहुत दिनों तक

यहाँ तक कि
जीने का सलीक़ा खो बैठूँ

यहाँ तक कि
दौड़ती भागती ज़िंदगी के टेम्पो पर

उठने वाले मीटर की परवाह करना
फ़ुज़ूल सा लगने लगे

जिस तरह
फ़ुज़ूल सा लगने लगता है

बैसाखी का सहारा ले कर जीना
फिर भी

जिए जाता हूँ
कि कभी कभी जीना पड़ता है यहाँ

महज़ एक इंच मुस्कुराहट की ख़ातिर