लफ़्ज़ों से मअ'नों का रिश्ता
पहले शायद कुछ होता था
जब हम तुतलाया करते थे
और अपनी कच्ची सी ज़बाँ में
दिल से दिल तक जा सकते थे
लेकिन अब लफ़्ज़ों से मआनी अपना रिश्ता पूछ रहे हैं
अब हम को क़ुदरत है ज़बाँ पर
तुतलाना हम भूल चुके हैं
नज़्म
एक हुज़्निया
सुलैमान अरीब