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एक ही रास्ता | शाही शायरी
ek hi rasta

नज़्म

एक ही रास्ता

ज़मीर अज़हर

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मिरे यार
तेरा मिरा एक ही रास्ता है

कि पलकों से सहरा ब-सहरा चमकदार ज़र्रात चुन कर
शराबोर मुट्ठी में महफ़ूज़ करते रहें

और सर-ए-शाम
फैला के इन को हथेली पे देखें

कि आया कोई रेज़ा-ए-ज़र भी हासिल हुआ या नहीं
किताब-ए-मुक़द्दर भी नक़्श-ए-इज़ाफ़ा न उतरे

तो बत्न-ए-तफ़क्कुर को उम्मीद के नान-ए-शीरीं से भर कर
शगुफ़्ता शुआ'ओं में सर को झुकाए

उसी अपनी मंसूब रह पे निकल जाएँ
पलकों से ज़र्रात चुनने की ख़ातिर

ग़ुरूब-ए-शफ़क़ तक