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एक गुज़ारिश | शाही शायरी
ek guzarish

नज़्म

एक गुज़ारिश

उज़ैर रहमान

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शिकस्ता हूँ मगर दौलत भी है हासिल हुई हम को
गुज़ारे साथ जो पल क़द्र उस की हो नहीं किस को

बने सरमाया हैं वो ज़िंदगी का प्यार से रखना
ख़ुदारा यादें मत लेना

यही यादें हैं ले जाएँगी हम को आख़री दम तक
न कोई हम-सफ़र होगा न जाएगा कोई घर तक

ये घर एहसास का होगा मेरा एहसास मत लेना
ख़ुदारा यादें मत लेना

है खेली प्यार की बाज़ी न जीता मैं न तुम हारी
लगाएगी ये दुनिया ज़र्ब अपने दम से ही कारी

ये तय है ज़ख़्म माँगेगा कोई मरहम लगा देना
ख़ुदारा यादें मत लेना

मिले हम इत्तिफ़ाक़न थे मगर राहें लगीं यकसाँ
कभी दुश्वारियाँ अपनी कभी मंज़िल रही पिन्हाँ

ये होता रहता है अक्सर जो रूठे दिल मना लेना
ख़ुदारा यादें मत लेना

ये हाथों की लकीरें बाज़ आएँगी कहाँ दिलबर
इन्हें तो बैर है हम से करम-फ़रमा रक़ीबों पर

रहेगा खेल क़िस्मत का उसे है खेल में लेना
ख़ुदारा यादें मत लेना

मुझे है ये यक़ीं पाओगे तुम अपनी नई मंज़िल
मैं तड़पूँ या करूँ गिर्या नहीं होगा कोई हासिल

हटा कर मुझ को रस्ते से क़दम आगे बढ़ा लेना
ख़ुदारा यादें मत लेना