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एक धुँदली याद | शाही शायरी
ek dhundli yaad

नज़्म

एक धुँदली याद

तबस्सुम काश्मीरी

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बारिशें उस के बदन पर
ज़ोर से गिरती रहीं

और वो भीगी क़बा में
देर तक चलती रही

सुर्ख़ था उस का बदन
और सुर्ख़ थी उस की क़बा

सुर्ख़ थी उस दम हवा
बारिशों में जंगलों के दरमियाँ चलते हो

भीगते चेहरे को या उस की क़बा को देखते
बाँस के गुंजान रस्तों पे कभी बढ़ते हुए

उस की भीगी आँख में खुलती धनक तकते हुए
और कभी पीपल के गहरे सुर्ख़ सायों के तले

उस के भीगे होंट पे कुछ तितलियाँ रखते हुए
बारिशों में भीगते लम्हे उसे भी याद हैं

याद हैं उस को भी होंटों पे सजी कुछ तितलियाँ
याद है मुझ को भी उस की आँख में खुलती धनक