जैसे झुक कर उस ने सरगोशी में मुझ से ये कहा 
वो दयार-ए-ग़र्ब हो कि गुलसितान-ए-शर्क़ हो 
ज़ुल्म के मौसम में बू-ए-गुल से खिलते हैं गुलाब 
जुस्तुजू की मंज़िलों में ख़्वाब की मिशअल लिए 
डालियों पर आ के गिरते हैं थके-माँदे परिंद 
आशियाँ-बंदी में रंग ओ नस्ल की तमईज़ क्या 
तफ़रीक़ क्या 
जाबिर ओ मजबूर की दुनिया अलग उक़्बा अलग
        नज़्म
एक दरख़्त एक तारीख़
हसन नईम

