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एक क्लर्क लड़की | शाही शायरी
ek clerk laDki

नज़्म

एक क्लर्क लड़की

नरेश कुमार शाद

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जिस्म है तेरा रंग की दुनिया
रूप है तेरा नूर की वादी

तू भी मजबूर है क्लर्की पर
ऐ क्लरकों के दिल की शहज़ादी

तेरी आँखें सुरूर का मंदिर
तेरी ज़ुल्फ़ें बहार का मस्कन

और टाइप की गत पे नाचता है
तेरा दोशीज़ा नग़्मई जोबन

तेरे उन आरिज़ों के फूलों पर
गुलिस्ताँ का गुमान होता है

और तेरा ग़ुरूर-ए-ज़ेबाई
फ़ाइलों से लिपट के रोता है

अपनी ज़ौ से झिजक रहा है चराग़
तुझ से डरती है तेरी परछाईं

ज़िंदगी की ज़रूरतें तुझ को
किन अजब रास्तों पे ले आएँ

तू भी वो शे'र-ए-दिल-नशीं है जिसे
आज तक कोई क़द्र-दाँ न मिला

ख़ुद सरापा बहार है लेकिन
तेरा अपना चमन कभी न खिला

आज तक तू ने ज़ख़्म खाए हैं
रंग-अफ़्शाँ गुलों के धोके में

आ सजा लूँ तिरे तजस्सुस को
अपने एहसास के झरोके में

आइना किस लिए है ज़ंग-आलूद
फूल की पंखुड़ी पे सिल क्यूँ है

देख कर तुझ को सोचता हूँ मैं
ज़िंदगी इतनी तंग-दिल क्यूँ है