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jinhen main DhunDhta tha aasmanon mein zaminon mein wo nikle mere zulmat-KHana-e-dil ke makinon mein
नज़्म
शहरयार
कट गया दिन ढली शाम शब आ गई फिर ज़मीं अपने महवर से हटने लगी चाँदनी करवटें फिर बदलने लगी आहटों के सिसकते हुए शोर से फिर मकाँ भर गया ज़हर सपनों का पी कर कोई आज की रात फिर मर गया!