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एहतियात | शाही शायरी
ehtiyat

नज़्म

एहतियात

कैफ़ी आज़मी

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अब तुम आग़ोश-ए-तसव्वुर में भी आया न करो
मुझ से बिखरे हुए गेसू नहीं देखे जाते

सुर्ख़ आँखों की क़सम काँपती पलकों की क़सम
थरथराते हुए आँसू नहीं देखे जाते

अब तुम आग़ोश-ए-तसव्वुर में भी आया न करो
छूट जाने दो जो दामान-ए-वफ़ा छूट गया

क्यूँ ये लग़्ज़िदा-ख़िरामी पे पशीमाँ-नज़री
तुम ने तोड़ा तो नहीं रिश्ता-ए-दिल टूट गया

अब तुम आग़ोश-ए-तसव्वुर में भी आया न करो
मेरी आहों से ये रुख़्सार न कुम्हला जाएँ

ढूँडती होगी तुम्हें रस में नहाई हुई रात
जाओ कलियाँ न कहीं सेज की मुरझा जाएँ