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ए'तिराफ़ | शाही शायरी
etiraf

नज़्म

ए'तिराफ़

जावेद अख़्तर

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सच तो ये है क़ुसूर अपना है
चाँद को छूने की तमन्ना की

आसमाँ को ज़मीन पर माँगा
फूल चाहा कि पत्थरों पे खिले

काँटों में की तलाश ख़ुश्बू की
आग से माँगते रहे ठंडक

ख़्वाब जो देखा
चाहा सच हो जाए

इस की हम को सज़ा तो मिलनी थी