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ए'तिराफ़ | शाही शायरी
etiraf

नज़्म

ए'तिराफ़

अज़रा अब्बास

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ये सब दास्तानों में लिखा है
या फ़र्ज़ी कहानियों में

तुम ने मुझ से मोहब्बत की है
तुम रोज़ सुब्ह से शाम तक

ये एक लफ़्ज़ दोहराते हो
और मुझे अपनी मोहब्बत का

यक़ीन दिलाते हो
लेकिन मुझे मालूम है

इस लफ़्ज़ के क्या मअनी हैं
जब तुम इस के मअनी

बता चुकोगे
तो ये लफ़्ज़ तुम्हारे गले में

सूखे थूक की तरह
चिपक जाएगा

और मेरे लिए तुम इसे
कभी अदा न करोगे

इस से पहले भी यही होता रहा है
उस ने भी मुझ से पहली बार

मोहब्बत का ए'तिराफ़ करते हुए
मेरे कान सूँघे थे

फिर मेरे पिस्तानों को टटोला था
तीसरी बार वो मेरे कपड़े

उतार चुका था
और फिर उस ने मुझे

इस ए'तिराफ़ का मौक़ा
कभी नहीं दिया!!